आज देश के हालात ठीक नहीं हैं- अखिलेश यादव!

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि आज देश के हालात ठीक नहीं है। धर्म और जाति के नाम पर समाज को बांटने का काम हो रहा है। असमानता बढ़ती जा रही है। संविधान पर संकट है, संस्थाओं पर भरोसा कम हो रहा है, उन पर नियंत्रण किया जा रहा है। सच को जानना आसान नहीं रहा। उन्होंने अधिवक्ताओं में ऊर्जा और जागरूकता की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनका सहयोग मिले बिना सफलता नहीं मिलती है। जब वे तय कर लेंगे कि बदलाव लाना है तो सन् 2022 में अवश्य परिवर्तन दिखाई देगा। समाजवादी सरकार के कार्यकाल में पहले भी उनके हित के तमाम फैसले हुए थे और फिर सरकार बनने पर उनको और ज्यादा सुविधाएं मुहैया कराएंगे।

श्री यादव आज पार्टी मुख्यालय, लखनऊ के डाॅ0 राममनोहर लोहिया सभागार में बड़ी संख्या में प्रदेश के कोने-कोने से आए अधिवक्ताओं को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। उन्होंने आज के दिन भोपाल की गैस त्रासदी का भी स्मरण किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश अध्यक्ष श्री नरेश उत्तम पटेल ने की और संचालन अधिवक्ता सभा के प्रदेश अध्यक्ष श्री जगन्नाथ यादव, एडवोकेट ने किया। सम्बोधन से पूर्व श्री अखिलेश यादव ने 20 वरिष्ठ अधिवक्ताओं को सम्मानित किया। कई अधिवक्ताओं ने श्री यादव को स्मृति चिह्न भेंट किए।
श्री यादव ने कहा कि सत्तारूढ़ भाजपा सरकार अपना काम नहीं कर रही है। बच्चों को स्वेटर नहीं मिले, मिड-डे मील में बाल्टी भर पानी में एक लीटर दूध मिलाकर बांटा गया, बच्चों को नमक रोटी परोसी गई और इसकी खब़र छापने वाले पत्रकार को जेल भेजा गया। आगरा- लखनऊ एक्सप्रेस-वे की जांच की, कुछ नहीं मिला। क्राइम कंट्रोल के लिए यूपी डायल 100 शुरू किया था उसे 112 में बदल दिया। एक नम्बर मिलाओ तो दूसरा मिलेगा, दूसरा मिलाओं तो पहला, यही तो एवीएम मशीन के बारे में भी चर्चा है।
श्री अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार ने गरीबी हटाने का वादा किया था मगर गरीबी मिटी नहीं। कश्मीर में लोग घरों में कैद हैं। धारा 370 खत्म हो गई पर झारखण्ड के चुनाव में उसी पर चर्चा की गई। मीडिया पर नियंत्रण है, जो भाजपा सरकार दिखाना चाहती है, वहीं दिखाया जा रहा है। सरकार बेकारी का आंकड़ा नहीं बता रही है। जीडीपी जीरो है। विकास ठप्प है। पहले उद्योग डुबोए फिर उनको कर्ज भी दिया। रियल स्टेट बैठ गया है। उन्हांेने कहा एक उद्योगपति ने सच बोला कि लोग डर रहे हैं, देश डर रहा है। इस हाल में जिसकी वजह से डर पैदा हुआ है उसके जाने पर ही डर दूर होगा।
कार्यक्रम में श्री दिनेश यादव ने बांसुरी वादन के साथ एक बांसुरी भी अध्यक्ष जी को भेंट किया। श्री डीआर मौर्य ने कविता पाठ किया। अधिवक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि वे श्री अखिलेश यादव की सरकार बनाने के लिए कुछ उठा नहीं रखेंगे। जनता में सत्ता दल के प्रति बहुत रोष है। लोगों को श्री अखिलेश जी के नेतृत्व पर ही विश्वास है।
इस अवसर पर सर्वश्री माता प्रसाद पाण्डेय पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, अहमद हसन नेता प्रतिपक्ष विधान परिषद, एसआरएस यादव, अरविन्द कुमार सिंह, डाॅ0 राजपाल कश्यप एम.एल.सी., अंबरीष पुष्कर विधायक के अतिरिक्त मुन्ना सिंह यादव, सहजराम यादव, देवीबक्स सिंह, हाजी इस्लामुद्दीन, ममता सिंह, असलम जावेद सिद्दीकी, राम समुझ रावत, आई.पी. सिंह, राकेश यादव, विष्णु पाण्डेय के अलावा अन्य सैकड़ों अधिवक्ता गणों की उपस्थिति उल्लेखनीय है।
(राजेन्द्र चौधरी)
मुख्य प्रवक्ता

विकलांग श्रद्धा का दौर- हरिशंकर परसाई

विकलांग श्रद्धा का दौर – हरिशंकर परसाई

अभी-अभी एक आदमी मेरे चरण छूकर गया है। मैं बड़ी तेजी से श्रद्धेय हो रहा हूं, जैसे कोई चलतू औरत शादी के बाद बड़ी फुर्ती से पतिव्रता होने लगती है। यह हरकत मेरे साथ पिछले कुछ महीनों से हो रही है कि जब-तब कोई मेरे चरण छू लेता है। पहले ऐसा नहीं होता था। हॉं, एक बार हुआ था, पर वह मामला वहीं रफा-दफा हो गया। कई साल पहले एक साहित्यिक समारोह में मेरी ही उम्र के एक सज्जन ने सबके सामने मेरे चरण छू लिए। वैसे चरण छूना अश्लील कृत्य की तरह अकेले में ही किया जाता है। पर वह सज्जन सार्वजनिक रूप से कर बैठे, तो मैंने आसपास खड़े लोगों की तरफ गर्व से देखा- तिलचट्टों देखो मैं श्रद्धेय हो गया। तुम घिसते रहो कलम। पर तभी उस श्रद्धालु ने मेरा पानी उतार दिया।

उसने कहा-, “अपना तो यह नियम है कि गौ, ब्राह्मण, कन्या के चरण जरूर छूते हैं।” यानी उसने मुझे बड़ा लेखक नहीं माना था। बम्हन माना था।श्रद्धेय बनने की मेरी इच्छा तभी मर गई थी। फिर मैंने श्रद्धेयों की दुर्गति भी देखी। मेरा एक साथी पी-एच.डी. के लिए रिसर्च कर रहा था। डॉक्टरेट अध्ययन और ज्ञान से नहीं, आचार्य-कृपा से मिलती है। आचार्यों की कृपा से इतने डॉक्टर हो गए हैं कि बच्चे खेल-खेल में पत्थर फेंकते हैं तो किसी डॉक्टर को लगता है। एक बार चौराहे पर यहॉं पथराव हो गया। पॉंच घायल अस्पताल में भर्ती हुए और वे पॉंचों हिंदी के डॉक्टर थे। नर्स अपने अस्पताल के डॉक्टर को पुकारती: ‘डॉक्टर साहब’ तो बोल पड़ते थे ये हिंदी के डॉक्टर।मैंने खुद कुछ लोगों के चरण छूने के बहाने उनकी टांग खींची है। लँगोटी धोने के बहाने लँगोटी चुराई है। श्रद्धेय बनने की भयावहता मैं समझ गया था। वरना मैं समर्थ हूं। अपने आपको कभी का श्रद्धेय बना लेता। मेरे ही शहर में कॉलेज में एक अध्यापक थे। उन्होने अपने नेम-प्लेट पर खुद ही ‘आचार्य’ लिखवा लिया था। मैं तभी समझ गया था कि इस फूहड़पन में महानता के लक्षण हैं। आचार्य बंबईवासी हुए और वहॉं उन्होने अपने को ‘भगवान रजनीश’ बना डाला। आजकल वह फूहड़ से शुरू करके मान्यता प्राप्त भगवान हैं। मैं भी अगर नेम-प्लेट में नाम के आगे ‘पंडित’ लिखवा लेता तो कभी का ‘पंडितजी’ कहलाने लगता।सोचता हूं, लोग मेरे चरण अब क्यों छूने लगे हैं? यह श्रद्धा एकाएक कैसे पैदा हो गई? पिछले महीनों में मैंने ऐसा क्या कर डाला? कोई खास लिखा नहीं है। कोई साधना नहीं की। समाज का कोई कल्याण भी नहीं किया। दाड़ी नहीं बढ़ाई। भगवा भी नहीं पहना। बुजुर्गी भी कोई नहीं आई। लोग कहते हैं, ये वयोवृद्ध हैं। और चरण छू लेते हैं। वे अगर कमीने हुए तो उनके कमीनेपन की उम्र भी 60-70 साल हुई। लोग वयोवृद्ध कमीनेपन के भी चरण छू लेते हैं। मेरा कमीनापन अभी श्रद्धा के लायक नहीं हुआ है। इस एक साल में मेरी एक ही तपस्या है- टांग तोड़कर अस्पताल में पड़ा रहा हूं। हड्डी जुड़ने के बाद भी दर्द के कारण टांग फुर्ती से समेट नहीं सकता।

लोग मेरी इस मजबूरी का नाजायज फायदा उठाकर झट मेरे चरण छू लेते हैं। फिर आराम के लिए मैं तख्त पर लेटा ही ज्यादा मिलता हूं। तख्त ऐसा पवित्र आसन है कि उस पर लेटे दुरात्मा के भी चरण छूने की प्रेरणा होती है।क्या मेरी टांग में से दर्द की तरह श्रद्धा पैदा हो गई है? तो यह विकलांग श्रद्धा है। जानता हूं, देश में जो मौसम चल रहा है, उसमें श्रद्धा की टांग टूट चुकी है। तभी मुझे भी यह विकलांग श्रद्धा दी जा रही है। लोग सोचते होंगे- इसकी टांग टूट गई है। यह असमर्थ हो गया। दयनीय है। आओ, इसे हम श्रद्धा दे दें।हां, बीमारी में से श्रद्धा कभी-कभी निकलती है। साहित्य और समाज के एक सेवक से मिलने मैं एक मित्र के साथ गया था। जब वह उठे तब उस मित्र ने उनके चरण छू लिए। बाहर आकर मैंने मित्र से कहा- “यार तुम उनके चरण क्यों छूने लगे?” मित्र ने कहा- “तुम्हें पता नहीं है, उन्हे डायबटीज हो गया है?” अब डायबटीज श्रद्धा पैदा करे तो टूटी टांग भी कर सकती है। इसमें कुछ अटपटा नहीं है। लोग बीमारी से कौन फायदे नहीं उठाते। मेरे एक मित्र बीमार पड़े थे। जैसे ही कोई स्त्री उन्हें देखने आती, वह सिर पकड़कर कराहने लगते। स्त्री पूछती- “क्या सिर में दर्द है?” वे कहते- “हां, सिर फटा पड़ता है।” स्त्री सहज ही उनका सिर दबा देती। उनकी पत्नी ने ताड़ लिया। कहने लगी- “क्यों जी, जब कोई स्त्री तुम्हें देखने आती है तभी तुम्हारा सिर क्यों दुखने लगता है?” उसने जवाब भी माकूल दिया। कहा- “तुम्हारे प्रति मेरी इतनी निष्ठा है कि परस्त्री को देखकर मेरा सिर दुखने लगता है। जान प्रीत-रस इतनेहु माहीं।”श्रद्धा ग्रहण करने की भी एक विधि होती है। मुझसे सहज ढंग से अभी श्रद्धा ग्रहण नहीं होती। अटपटा जाता हूं। अभी ‘पार्ट टाइम’ श्रद्धेय ही हूं। कल दो आदमी आए। वे बात करके जब उठे तब एक ने मेरे चरण छूने को हाथ बढ़ाया। हम दोनों ही नौसिखुए। उसे चरण छूने का अभ्यास नहीं था, मुझे छुआने का। जैसा भी बना उसने चरण छू लिए। पर दूसरा आदमी दुविधा में था। वह तय नहीं कर पा रहा था कि मेरे चरण छुए या नहीं। मैं भिखारी की तरह से देख रहा था। वह थोड़ा सा झुका। मेरी आशा उठी। पर वह फिर सीधा हो गया। मैं बुझ गया। उसने फिर जी कड़ा करके कोशिश की। थोड़ा झुका। मेरे पांवों में फड़कन उठी। फिर वह असफल रहा। वह नमस्ते करके ही चला गया। उसने अपने साथी से कहा होगा- तुम भी यार कैसे टुच्चों के चरण छूते हो। मेरे श्रद्धालु ने जवाब दिया होगा- काम निकालने को उल्लुओं से ऐसा ही किया जाता है। इधर मुझे दिन-भर ग्लानि रही। मैं हीनता से पीडि़त रहा। उसने मुझे श्रद्धा के लायक नहीं समझा। ग्लानि शाम को मिटी जब एक कवि ने मेरे चरण छुए। उस समय मेरे एक मित्र बैठे थे। चरण छूने के बाद उसने मित्र से कहा, “मैंने साहित्य में जो कुछ सीखा है, परसाईजी से।” मुझे मालूम है, वह कवि सम्मेलनों में हूट होता है। मेरी सीख का क्या यही नतीजा है? मुझे शर्म से अपने-आपको जूता मार लेना था। पर मैं खुश था। उसने मेरे चरण छू लिए थे।अभी कच्चा हूं। पीछे पड़ने वाले तो पतिव्रता को भी छिनाल बना देते हैं। मेरे ये श्रद्धालु मुझे पक्का श्रद्धेय बनाने पर तुले हैं। पक्के सिद्ध-श्रद्धेय मैंने देखे हैं। सिद्ध मकरध्वज होते हैं। उनकी बनावट ही अलग होती है। चेहरा, आंखे खींचने वाली। पांव ऐसे कि बरबस आदमी झुक जाए। पूरे व्यक्तित्व पर ‘श्रद्धेय’ लिखा होता है। मुझे ये बड़े बौड़म लगते हैं। पर ये पक्के श्रद्धेय होते हैं। ऐसे एक के पास मैं अपने मित्र के साथ गया था। मित्र ने उनके चरण छुए जो उन्होंने विकट ठंड में भी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए चादर से बाहर निकाल रखे थे। मैंने उनके चरण नहीं छुए। नमस्ते करके बैठ गया। अब एक चमत्कार हुआ। होना यह था कि उन्हें हीनता का बोध होता कि मैंने उन्हें श्रद्धा के योग्य नहीं समझा। हुआ उल्टा। उन्होंने मुझे देखा। और हीनता का बोध मुझे होने लगा- हाय मैं इतना अधम कि अपने को इनके पवित्र चरणों को छूने के लायक नहीं समझता। सोचता हूं, ऐसा बाध्य करने वाला रोब मुझ ओछे श्रद्धेय में कब आयेगा।श्रद्धेय बन जाने की इस हल्की सी इच्छा के साथ ही मेरा डर बरकरार है। श्रद्धेय बनने का मतलब है ‘नान परसन’-‘अव्यक्ति’ हो जाना। श्रद्धेय वह होता है जो चीजों को हो जाने दे। किसी चीज का विरोध न करे- जबकि व्यक्ति की, चरित्र की, पहचान ही यह है कि वह किन चीजों का विरोध करता है। मुझे लगता है, लोग मुझसे कह रहे हैं- तुम अब कोने में बैठो। तुम दयनीय हो। तुम्हारे लिए सब कुछ हो जाया करेगा। तुम कारण नहीं बनोगे। मक्खी भी हम उड़ाएंगे।और फिर श्रद्धा का यह कोई दौर है देश में? जैसा वातावरण है, उसमें किसी को भी श्रद्धा रखने में संकोच होगा। श्रद्धा पुराने अखबार की तरह रद्दी में बिक रही है। विश्वास की फसल को तुषार मार गया। इतिहास में शायद कभी किसी जाति को इस तरह श्रद्धा और विश्वास से हीन नहीं किया गया होगा। जिस नेतृत्व पर श्रद्धा थी, उसे नंगा किया जा रहा है। जो नया नेतृत्व आया है, वह उतावली में अपने कपड़े खुद उतार रहा है। कुछ नेता तो अंडरवियर में ही हैं। कानून से विश्वास गया। अदालत से विश्वास छीन लिया गया। बुद्धिजीवियों की नस्ल पर ही शंका की जा रही है। डॉक्टरों को बीमारी पैदा करने वाला सिद्ध किया जा रहा है। कहीं कोई श्रद्धा नहीं विश्वास नहीं।अपने श्रद्धालुओं से कहना चाहता हूं- “यह चरण छूने का मौसम नहीं, लात मारने का मौसम है। मारो एक लात और क्रांतिकारी बन जाओ।”(हरिशंकर परसाई की साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कृति ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ से साभार।)

मीम और भीम भजपाइन लगते हैं! – मौर्या जी बनारस वाले कहिन!!

अमीम_______________वंचित

इस हेडलाइन का मतलब साफ है औवेसी के मजलिस और प्रकाश आंबेडकर के वंचित बहुजन आघाड़ी समर्थकों को एक खेल से वंचित रखा गया……….आइये पुरे निष्कर्ष के बाद प्रस्तुत है एक सुनियोजित खेल का नंगा सच…….डियर जय मीम और जय भीम वालो,महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी के लिए दो बल्लेबाजों(प्रकाश आंबेडकर व औवेसी) ने जमकर खेला नाम के लिए वह विरोधी थे इन्होंने जमकर गेंदे (वोट) लीली….
जिसका फायदा शिवसेना बीजेपी को हुआ और कांगे्रस- राष्ट्रवादी कांग्रेस फालोआन कर गई…..महाराष्ट्र विधानसभा में कुल २८८ सीटें थी उन सीटों में से कुछ चिन्हित सीटों पर ही औवेसी साहब व प्रकाश जी चुनाव लडे थें….जैसे कि जहां पर मुस्लिम व बहुजन मतदाता अधिक थे वहां इन्होंने अपने अपने जाति के कैंडिडेट उतारकर कांग्रेस के वोट अपने पास ट्रासंफर कर लिए..
जिस सीट पर सिर्फ बहुजन समाज मतदाता अधिक थे वहां प्रकाश जी वन साईड खेल दिये और जहां मुसलमान मतदाता था वहा औवेसी साहब का १५ बाटल खुन काम आ गया….इस चुनाव की ३६ सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस गठबंधन के हार का अंतर २/३ हजार वोटों से कम है वह पर वंचित बहुजन को ७,९,१०,२१,३४ हजार वोट मिले हैं……आप कहोगे यह हार के बाद हम सेक्युलरो का रंडी रोना है,मेरा सवाल जय भीम जय मीम नारेवाले नेता आंबेडकर जी व औवेशी साहब से है,,,,,
हैदराबाद की पार्टी १५/१६ सीटों में अपने राज्य में लड़ती है,
अन्य राज्यों में ७०/८० सीटों पर माजरा क्या है ??
यदि आप लोगो को खेलना ही था तो कांग्रेस के लिए खेलते किसी चीज का डर था ईडी का ?? सीबीआई का?? या फिर रकम कांग्रेस के औकात के अनुसार ज्यादा पेड़ की गईं???यह जो सेक्युलर है ना इसका दर्द लेकर देखो यह दोनो तरफ से पेले जाते हैं …
कही संघी तो कही जय भीम तो कही आपकी तरह जय मीम वाले….
जितना इस्लाम के लिए तुम नहीं लड़ते उससे कहीं ज्यादा एक सेकुलर हिंदु तुम्हें और तुम्हारे इस्लाम के लिए लड़ता है..मुसलमान को अखलाक पर लडने के लिए अखिलेश चाहिए!!
मुसलमान को बाबरी पर मुल्ला मुलायम चाहिए!!
मुसलमान को संजय गांधी जैसे कट्टर हिंदु सगे बेटे का बहिष्कार करनेवाली आयरन लेडी इंदिरा जी चाहिए!!
आपकी आवाज बनने के लिए दमदार सेक्युलर नेता चाहिए!!
लेकिन औवेसी जी को सुनते ही आपको इस्लाम खतरे में लगने लगता है और आप अपने आप कट्टर हो जाते हैं…..जय भीम वालो को आरक्षण के लिए उनके अधिकार के लिए कांग्रेस चाहिए क्षेत्रीय पार्टी चाहिए लेकिन कांग्रेस को हारने में कोई कसर नहीं छोड़ते….
महाराष्ट्र के जय भीम समाज पर पहले से कोई उम्मीद नहीं रही है आगे भी ना रहे है लेकिन यह मजलिसियो तुम तो उत्तरप्रदेश बिहार वाले मुसलमान हो रामराज्य की नंगा नाच तो देख ही रहे हो फिर भी आंख नही खुल रही…..खेल एकदम ओपन है औवेसी के कैंडिडेट वहीं से उम्मीदवार बनते है जहां से कांग्रेस या अन्य सेक्युलर दल जीतते दिखाई देते हैं…
एक कडवा सच तो यह भी है कल आप ही लोग कांग्रेसी और सपाई थे आपके कट्टर पन ने आपको ऐसा बना दिया…
कट्टरपंथी चाहे संघ में हो चाहे जहां हो वह घातक ही होता है…

नोट:: इलेक्शन कमीशन की लिंक आपको कमेंट इनबाक्स में दे रहे है आप एक एक करके चेक कर सकते हैं सबेरे से हम वहीं किये है आप देख लिजिए शायद आपको समझ आ जाए….Imp:: गाली इस्लाम के खिलाफ है देखते है आज आप गाली को पसंद करते है या इस्लाम को!

आमीन आमीनबाकि आप खुद समझदार है
जय भीम
की जय मीम….

मौर्या जी बनारस वालेDipesh Ram Maurya

समाजवादी पार्टी की आत्ममुग्धता उसे भारी पड़ेगी!- यशवीर!!

उत्तर प्रदेश उपचुनाव के रिजल्ट जो भी हों लेकिन रुझानों से जो चीजें निकल कर आईं हैं उससे स्पष्ट है कि बसपा का नुक़सान हुआ है।समाजवादी पार्टी भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में लगातार चुनौती दे रही है…..

लेकिन जो सबसे आश्चर्यजनक बात है वह ये कि कांग्रेस का ग्राफ बढ़ा है। कांग्रेस का बढ़ा ग्राफ और बसपा का बुरा प्रर्दशन समाजवादी पार्टी के लिहाज से बहुत अच्छे संकेत नहीं हैं क्योंकि जब कांग्रेस मजबूत होगी तो बसपा का वोटर जोकि भाजपाई नहीं है वह समाज वादी पार्टी के बजाय कांग्रेस को पसंद करेगा इसके अपने सामाजिक और राजनैतिक कारण हो सकते हैं लेकिन सच यही है,साथ ही मुसलमान भी अपने पुराने घर में वापसी कर सकते हैं।

समाजवादी नेतृत्व को दूसरे नम्बर पर रहने की आत्ममुग्धता से बाहर आना होगा बाकी उनकी मर्जी..!!

यशवीर

निजीकरण अर्थव्यवस्था में ज़हर की तरह है- मनोज यादव(RVCP)

निजीकरण का जहर

पिछली सरकार दोबारा से प्रचन्ड बहुमत से वापस सत्ता मे आती है।मुद्दे क्या थे राष्ट्रवाद विदेश नीति मजबूत नेतृत्व रोजगार का वादा और कमजोर विपछ।लगभग हम सभी ने बहुमत से जिताया।लेकिन आज चेहरा कुछ कुछ सामने आने लगा है।यानी निजीकरन।
तमाम मित्र निजीकरण का समर्थन कर रहें है पर जब तक वो इस मीठे जहर को समझेंगे तब तक वो हर नस में घुस चुका होगा।
मुझे निजीकरण में जिस बात का डर था वो सामने आने लगे, उच्च वर्ग के लोग तेजस ट्रैन से खुस थे क्योकि वो पैसा खर्च कर सुविधा चाहते है पर हमरे देश मे 80% जनता कम खर्च में काम करना चाहती है वो थोड़ा सा पैसा बचा कर बेटी की शादी, बेटे की पढ़ाई, मा बाप की दवाई आदि के लिए बचाता है आम इंसान तेजस नही सामान्य ट्रेन में सफर करता है ऐसा नही की वो करना नही चहतापर उसकी जिम्मेदारी उसे रोक देती है।हमारे देश मे आज भी लोग अपनी शादी का कोट पैंट पहन कर कम से कम 25 शादी निपटा देते है सोचते है कि कुछ देर की ही तो बात। आज खबर आ रही है तेजस के लिए ट्रेनों को अचानक रोका जाने लगा मतलब पैसे वाले समय से पहुंचे और गरीब घिसता रहे।
देश के 5% रईश भी वोट नही देते होंगे चुनाव रैली में नही जाते होंगे क्योकि उन्हें कोई फर्क नही पड़ता कि सरकार किसकी है वो तो पैसे से सब कर लेते है और जिसे फर्क पड़ता है सरकार से उसके लिए सरकार काम ही नही करना चाह रही।
तेजस के लिए बाकी ट्रेनें रोकी जाएंगी अभी 50 और चलेंगी तब क्या हाल होगा सरकारी रेल का ट्रैक तो एक ही उस पर प्राथमिकता निजी ट्रेनों की रहेगी और सामान्य इंसान भटकता रहेगा और मजबूरन 100 किमी की दूरी 10 घंटे में पूरी करेगा।
एक बात बताइये आप भरोसा किस पर करते है सरकारी पर या निजी पर निश्चित तौर पर सरकारी पर वो भी इस हद तक कि लड़की की शादी के लिए भी 1लाख निजी क्षेत्र में पाने वाले कि जगह 40 हजार पाने वाले सरकारी को ही चाहते हैं।
हर व्यक्ति चाहता है कि मेरे बेटे को सरकारी कॉलेज मिले क्यो उत्तर साफ है सरकारी की क़्वालिटी में कोई कमी नही है, IIT, IIM, AIMS ,PGIये सब सरकारी है, क्या कोई निजी कॉलेज इनकी बराबरी कर सकता है नही न।
निजी का समर्थन करने से पहले सोचिए कि अगर देश के सारे हॉस्पिटल निजी कर दिए जाएं तो गरीब को कौन सा हॉस्पिटल इलाज के लिए लेगा। क्या आपको पता नही है कि आपका मरीज चाहे मर रहा हो पर जब तक पैसा नही जमा हो जाता इलाज शुरू नही होता कई बार मरने पर भी लाश तब तक नही दी जाती जब तक बिल का भुकतान नही हो जाता। कितने निजी हॉस्पिटल में किसी गरीब का इलाज होते देखा है।
आज जब इलाज के लिए किसी निजी हॉस्पिटल में जाते ह तब भी देखते हैं कि वो डॉक्टर किस सरकारी हॉस्पिटल में डॉक्टर रह चुका है।जितने भी फेमस डॉक्टर है सब किसी न किसी सरकारी हॉस्पिटल के डॉक्टर रहे हैं।
अक्सर लोग बोल बैठते है कि जब सरकारी का इतना समर्थन है तो सरकारी मास्टर अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में क्यो नही पढ़ाते? तो मैं बता देना चाहता हूँ कि हर शिक्षक पढ़ाने को तैयार है हमे सरकारी शिक्षक से दिक्कत नही है, सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधायों से दिक्कत है। निजी विद्यालयों जैसे भवन दीजिये, फर्नीचर दीजिये, बोर्ड दीजिये,लैब दीजिये, स्मार्ट क्लास दीजिये, पुस्तकालय लीजिये, शौचालय दीजिये,खेल का मैदान दीजिये, स्टाफ दीजिये, हर क्लास को एक शिक्षक दीजिये हर कोई पढ़ाने को तैयार हैं।
केरला एक ऐसा राज्य है जंहा 95% से अधिक जनता अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में पढ़ाती है और केरल सबसे अधिक IAS देता है IIT देता है वैज्ञानिक देता है डॉक्टर देता शिक्षा पूरे देश मे सबसे आगे है कैसे जबकि सब सरकारी है।
जरा सोच कर वताइये आप सरकारी हॉस्पिटल जाने से क्यो बचते क्या वँहा के डॉक्टर पर भरोसा नही जी नही डॉक्टर पर बहुत भरोसा है पर वँहा की व्यवस्था से दिक्कत है तो बताइते क्या व्यवस्था डॉक्टर सुधारेंगे या सरकार सुधरेगी, वही हाल शिक्षको है किसी भी स्कूल में निजी स्कूलों की तरह भैतिक साधन नही है, 2 शिक्षक 5 क्लास पढ़ाते है, साथ ही क्लर्क चैकीदार सब बन जाते है। जब प्रयाप्त शिक्षक नही है तो कैसे सुधरेगा स्कूल और दोष दिया जाता है शिक्षक को।
अगर देश के सैनिक को हथियार की जगह गुलेल दे देंगे , जंहा 100 चाहिए वँहा 10 सैनिक देंगे और जब वो हार जाए तो उसे कायर कहेंगे सैनिक कितना भी बहादुर हो लड़ने के लिए हथियार तो चाहिए ही।
निजीकरण जोंक की तरह है जब तक शरीर मे खून है चूसेंगे वरना बोल देंगे हम दिवालिया हो गए और चल देंगे।
एक उदाहरण और देता हूँ pvr तो गए ही होंगे कोल्ड्रिंक भी पी होगी कितने की पी? जो बाहर 20रु की मिलती है वो उनके क्षेत्र में 220रु की हो जाती है वो उनका निजी क्षेत्र है वो कितने की भी बेंचे कोई कुछ नही बोल सकता। ये है निजीकरण ।

मनोज यादव

राष्ट्रीय संयोजक

राष्ट्रीय विद्यार्थी चेतना परिषद